Saturday, September 24, 2016

ग़म अगर  है  तो  बँटवारा   हो 

ग़म अगर  है  तो  बँटवारा   हो  / 
कुछ हो मेरा  ज़रा  तुम्हारा हो  //

आज भी जीना क्यूँकर मुश्किल / 
ज़रा जो  दोस्त  का  सहारा  हो //

दूर  तक चार  सिम्त  पानी   है  /
एक  उम्मीद  है   किनारा   हो  //

सहे नखरे   बड़े   उठाए   नाज़  /
अब अंदेशा  है कि  गवारा  हो  //

आह  माज़ी  पुकारता  है   मुझे/
वो  ज़िन्दगी  वही   दुबारा   हो //

हरेक  लम्हा   बदरूप   बेजान  /
रही हसरत खुशनुमा प्यारा हो //

ख़ुद तो माँ के  हुए  ना बाबा के /
मेरा  बच्चा   मगर  हमारा   हो  //
*
१२ मई,२०१५ .
-गंगेश  गुंजन .

Thursday, September 22, 2016

जनता बुड़ि-बकलेल !

ढेलमासुक  हम ढेप  भेल  छी।
खलिया गाड़िक खेप भेल छी।।

यार-दोस्त सम्बन्धिक  परिकठ।
माटि-मलहमक लेप भेल छी।।

एते  पैघ   आबादीक   गामक ।
गनल-गुथल अभिशेष भेल छी।।

परिवेशक  वन  आ झाँखुर   सँ ।
अपनहि मे हम कोनो  जेल  छी।।

न्यायालय केर कोनो  दोख  की।
बिनु अपराधो बन्द    भेल  छी।।

टीशन  बीचक  घन  अन्हार  मे।
इंजिन  भङ्गठल  रेल  भेल  छी।।

लोकतंत्र  केर   मंदिर - मस्जिद।
एक  बेर    संसदो   गेल    छी।।

संविधान    बनबैत   सभा    घर। 
तकरहि हम बूड़ि-बकलेल  छी।।

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-गंगेश गुंजन। 10.03.’16.