Wednesday, September 28, 2016
Saturday, September 24, 2016
ग़म अगर है तो बँटवारा हो
ग़म अगर है तो बँटवारा हो /
कुछ हो मेरा ज़रा तुम्हारा हो //
आज भी जीना क्यूँकर मुश्किल /
ज़रा जो दोस्त का सहारा हो //
दूर तक चार सिम्त पानी है /
एक उम्मीद है किनारा हो //
सहे नखरे बड़े उठाए नाज़ /
अब अंदेशा है कि गवारा हो //
आह माज़ी पुकारता है मुझे/
वो ज़िन्दगी वही दुबारा हो //
हरेक लम्हा बदरूप बेजान /
रही हसरत खुशनुमा प्यारा हो //
ख़ुद तो माँ के हुए ना बाबा के /
मेरा बच्चा मगर हमारा हो //
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१२ मई,२०१५ .
-गंगेश गुंजन .
Thursday, September 22, 2016
जनता बुड़ि-बकलेल !
ढेलमासुक हम ढेप भेल छी।
खलिया गाड़िक खेप भेल छी।।
यार-दोस्त सम्बन्धिक परिकठ।
माटि-मलहमक लेप भेल छी।।
एते पैघ आबादीक गामक ।
गनल-गुथल अभिशेष भेल छी।।
परिवेशक वन आ झाँखुर सँ ।
अपनहि मे हम कोनो जेल छी।।
न्यायालय केर कोनो दोख की।
बिनु अपराधो बन्द भेल छी।।
टीशन बीचक घन अन्हार मे।
इंजिन भङ्गठल रेल भेल छी।।
लोकतंत्र केर मंदिर - मस्जिद।
एक बेर संसदो गेल छी।।
संविधान बनबैत सभा घर।
तकरहि हम बूड़ि-बकलेल छी।।
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-गंगेश गुंजन। 10.03.’16.